The Effect Of Taliban Rule Is Not On Jammu And Kashmir At Present, But It Is Likely To Happen In Future – तालिबान हुकूमत का असर फिलहाल जम्मू-कश्मीर पर नहीं, लेकिन भविष्य में होने की आशंका

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तालिबान हुकूमत का असर फिलहाल जम्मू-कश्मीर पर नहीं, लेकिन भविष्य में होने की आशंका

प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली:

ये सवाल बार-बार उठ रहा है कि अफ़गानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) के कब्ज़े का जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) पर क्या असर होगा. फिलहाल वहां हालात नियंत्रण में हैं, लेकिन सुरक्षा बलों का अंदेशा है कि आने वाले कुछ महीनों में इसका खासा असर नज़र आ सकता है.  अमेरिका के छोड़े हुए हथियारों से लैस तालिबान अब इस क्षेत्र में एक ताक़त है. हालांकि तालिबान के प्रवक्ता कह चुके हैं कि कश्मीर का मुद्दा भारत-पाकिस्तान को सुलझाना चाहिए और वो बार-बार भरोसा दिला रहा है कि वो अपने यहां से आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा. लेकिन जानकारों के मुताबिक इस वादे पर यक़ीन नहीं किया जा सकता.

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मंगलवार को ही अल क़ायदा ने तालिबान को बधाई देते हुए कश्मीर को आज़ाद कराने की बात कही. जाहिर है, वहां आतंकी संगठनों के हौसले बढ़े हुए हैं और वो तालिबान की आधिकारिक मर्ज़ी के बिना भी कश्मीर में घुसपैठ और हिंसा की कोशिश कर सकते हैं. फिलहाल सेना के सूत्रों के मुताबिक कश्मीर पर काबुल का असर नहीं दिख रहा है  .इस एक अगस्त से 15 अगस्त तक  वहां पांच आतंकी मारे गए . आतंकी वारदात की घटनायें 18 हुई . वहीं, 15 अगस्त से 31 अगस्त तक 12 आतंकी मारे गए . आतंकी वारदातें 10 हुईं . यही नही  अगस्त महीने में जहां 17 आतंकी मारे गये थे तो जुलाई  में 33 मारे गए थे.

श्रीनगर में सेना के कोर कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कहते है पहले भी जब अफगानिस्तान में तालिबान आया था तब उस वक्त आईएसआई ने कश्मीर में मुजाहिदों को भेजा था पर तब के हालात और अब के हालात काफी बदल चुके है. कश्मीर में आतंकियों से मुकाबला करने के लिये राष्ट्रीय राइफल्स बन चुका है . सुरक्षा ग्रिड काफी मजबूत हो गया है. अब देखना ये होगा कि तालिबान पाकिस्तान के असर में कितना आता है.  लेकिन अभी तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में ही पांव जमाने में जुटा है. मगर लश्कर और जैश जैसे संगठन अब अफ़ग़ानिस्तान में अपना ठिकाना बना रहे हैं.

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हाल में खबर आई थी कि पाकिस्तान ने कहा कि मसूद अज़हर उसके यहां नहीं है, फिर हक्कानी नेटवर्क की हरकतें चिंता पैदा करने वाली हैं और आइएस खुरासान भी सक्रियता बढ़ा रहा है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर में अंदरूनी सुरक्षा और बाहरी चौकसी की चुनौतियां बड़ी हो सकती हैं. जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद्य ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि कश्मीर पर उसका असर इस बात से पता चलेगा कि उनकी जमीन पर नीति क्या रहती है ? बेशक वह कह रहा है कि पुराना  तालिबान से नया तालिबान अलग है .  पुराने समय का अनुभव अच्छा नही रहा . विदेशी आतंकी घुस आए . आतंकी हमले बढ़े . वहां जेलों से आतंकी निकाले गए . क्या उनमें से जैश और लश्कर के आतंकी कश्मीर नही आएंगे ?  यह सब तो  वक्त बताएगा पर सतर्क रहने की जरूरत है . वैसे  काफ़ी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वाकई तालिबान भारत से स्थिर रिश्ते चाहता है?

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